गुप्त साम्राज्य gupt samrajya ka jivan parichay
गुप्त साम्राज्य गुप्त काल
कुछ सालों के पश्चात एक नए वंश का उदय हुआ यह राजवंश गुप्त वंश के नाम से जाना जाता है गुप्त साम्राज्य भारत में लगभग 240 ईसापुर में शुरू हुआ जिसकी स्थापना श्री गुप्त ने कर दी थी विशाल साम्राज्य स्थापित किया था
संस्थापक। श्री गुप्त
Cp। कोसंभी up
उत्तराधिकारी। घटोचक था
उपाधि उपाधि। महाराजाधिराज
प्रथम मंदिर का। मेरा श्रावण बिहार में हुआ
श्री गुप्त का उल्लेख। प्रभावती के पूनम अभिलेख
गुप्त साम्राज्य का संस्थापक श्री गुप्त था जिसने 240 ईसा पूर्व पर गद्दी में बैठा अपनी राजधानी कौशांबी बनाई तथा श्री गुप्ता पुत्र घटोचक था गुप्त साम्राज्य की उपाधि महाराजाधिराज थी गुप्त साम्राज्य में बना प्रथम मंदिर वृक्ष रावण बिहर में था तथा गुप्
श्री गुप्त का उल्लेख प्रभावती के ताम्र अभिलेख से मिलता है
गुप्त काल को गुप्त काल को कला एवं संस्कृति विज्ञान के विषय में विकास के कारण इस काल को स्वर्ण काल कहा जाता है श्री गुप्त को गुप्तों का आदि पुरुष कहा जाता है
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घटोचक घटोचक 280- 320 ad
इसका पुत्र चंद्रगुप्त प्रथम था
समुद्रगुप्त प्रथम 335एसबीी
समुंद्र गुप्त को भारत का नेपोलियन कहा नेपोलियन कहा जाता है तथा समुद्रगुप्त को भारत का
मौर्य उत्तर काल ब्राह्मण साम्राज्य
शुंग वंश के प्रभाव में आने वाले दोष के प्रभाव में आने वाले दोष के प्रभाव में आने वाले दोष के प्रभाव में आने वाले तत्व की कमी के प्रभाव में होने की समस्या थी। दक्षिण भारत में नियंत्रक के रूप में नियंत्रित किया जाता है। थे स्मिथ ने किया था समुद्रगुप्त की उपाधि भारत को कविराज कहा जात था अर्थ समुद्रगुप्त उपासक का विष्णु भगवान का इसकी सेकंड उपाधि परम भागवत की उपाधि धारण की थी समुद्रगुप्त संगीत का प्रेमी था समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरीश थी हरीश ने प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख इलाहाबाद में अपने लेख लिखे इज्जत दिल भट्टा कहा जाता है प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख में 4 राजाओं की जानकारी मिलती है समुद्रगुप्त अशोक जहांगीर और अकबर समुद्रगुप्त ने उत्तर में 9 शासक को पराजित किया तथा दक्षिण में 12 शासकों को पराजित कर दक्षिण भारत में कर मुक्त भारत कर दिया 360 ईसवी में समुद्रगुप्त प्रथम ने अश्वमेध यज्ञ तथा यह बौद्ध धर्म की महायान शाखा से संबंधित है इसने सिक्कों पर समय पर पर क्लिक जाती है सिक्के समुद्रगुप्त के सिक्कों पर भी दो ही था समुद्रगुप्त के सिक्कों पर वीणा वादक बजाते हुए दिखाया गया जिसकी उपाधि महाराजाधिराज विक्रमादित्य धारण की थी 6 प्रकार के सोने के सिक्के चलाए जिसका उत्तराधिकारी राम गुप्त समुद्रगुप्त चंद्रगुप्त था
राम गुप्त
राम गुप्त समुद्रगुप्त का बड़ा पुत्र था जो गद्दी पर बैठा उसकी पत्नी ध्रुवस्वामिनी याद रूप देवी थी राम गुप्त अत्यंत कमजोर शासक था राम गुप्त को एक शक राजा रुद्रदामन ने हराकर अपनी पत्नी को और अपने दरबार को राम गुप्त रुद्रदामन को भेंट करने चला पता चलता है चंद्रगुप्त द्वितीय या समुद्रगुप्त सेकंड को चंद्रगुप्त सेकंड ने अपने बड़े भाई राम गुप्त की हत्या कर 380 ईसा पूर्व में मगध की गद्दी पर विक्रमादित्य के नाम से बैठ गया चंद्रगुप्त सेकंड ने 400 वर्षों में मेवाड़ तथा गुजरात पर कर रहे शख्स आजा को शासकों को बुरी तरह परास्त किया और उस उपलक्ष में चांदी के सिक्के चलाए विक्रमादित्य की उपाधि धारण की
चंद्रगुप्त द्वितीय 380। /412
चंद्रगुप्त द्वितीय समुद्रगुप्त का बड़ा पुत्र था यह मगध की गद्दी पर विक्रमादित्य के नाम से बैठा इसने उपाधि परम भागवत की धारण की सड़कों को भारत से बाहर कर बैठक वंश की सहायता से किया था इसने सफलतापूर्वक भारत जीता पुत्र अपने बड़े भाई राम गुप्त के नाम पर रखा आर्यभट्टा रहता था इसका विभाग दुर्ग सावनी या नागमिल्स की राजकुमारी कुमार नावा से हुआ जिस के 1 पुत्र कुमार गुप्ता तथा दूसरी पुत्री प्रभावती गुप्ता दो प्रभावती गुप्त का विवाह भाग तक वंश रूद्र सेन चेकिंग से हुआ चंद्रगुप्त चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के काल में नवरत्न रहते थे चंद्रगुप्त द्वितीय के काल में चीनी यात्री फाहियान भारत आया जिसकी पुस्तकों
कालिदास
नाटक आगे वाला सुकुंतलम मेघदूत कुमारसंभव आदि रचना की
संस्कृत व्याकरण का उपयोग किया बोलिए बेहतर था इसने व्रत संहिता का वकिया बेतालघाट जादू मंत्र शास्त्र का राजा पंडित ज्योतिष विद्या था से धन मंत्री वस्तु कला और शिल्प करा कर आ जाता हरिसिंह एक कविता जो कविता लिखता था धन्वंतरी वैद्य चिकित्सा आयुर्वेदिक की रचना करता था अमर सिंह शब्दकोश का अमरकोश का चंद्रगुप्त के दरबार में आर्यभट्ट नामक गणितज्ञ रहता था बड़ा भाई राम गुप्त की जानकारी भूषण अभिलेख से राम गुप्त के बारे में बाणभट्ट जो हर्षचरित है राजशेखर जो काव्यमीमांसा है सीपीके चंद्रगुप्त विक्रमादित्य शिक्षकों को नमन किया हो विद्या रथ को रोक दिया हो चंद्रगुप्त मौर्य की जानकारी महरौली दिल्ली में स्थित लौह स्तंभ अभिलेख से मिलती है जो शब्द की ज्ञान की प्राप्ति होती है चंद्रगुप्त की राजधानी महरौली अभिलेख में दिल्ली लोहा स्तंभ में पता चलता है चंद्रमा मकसद से उसकी पता चलता है चंद्रगुप्त की जानकारी महरौली अभिलेख से मिलती है चंद्रगुप्त सेकंड का काल सत्य सत्य संस्कृत का महान चंद्रगुप्त का उत्तराधिकारी कुमारगुप्त महेंद्र गोविंद गुप्त रहे
Chandargupt ditiya
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